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SZPONZORÁLT
Squid Game is back, and so is Player 456. In the gripping Season 2 premiere, Player 456 returns with a vengeance, leading a covert manhunt for the Recruiter. Hosts Phil Yu and Kiera Please dive into Gi-hun’s transformation from victim to vigilante, the Recruiter’s twisted philosophy on fairness, and the dark experiments that continue to haunt the Squid Game. Plus, we touch on the new characters, the enduring trauma of old ones, and Phil and Kiera go head-to-head in a game of Ddakjji. Finally, our resident mortician, Lauren Bowser is back to drop more truth bombs on all things death. SPOILER ALERT! Make sure you watch Squid Game Season 2 Episode 1 before listening on. Let the new games begin! IG - @SquidGameNetflix X (f.k.a. Twitter) - @SquidGame Check out more from Phil Yu @angryasianman , Kiera Please @kieraplease and Lauren Bowser @thebitchinmortician on IG Listen to more from Netflix Podcasts . Squid Game: The Official Podcast is produced by Netflix and The Mash-Up Americans.…
Zehan
Mind megjelölése nem lejátszottként
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Zehan is a weekly podcast where Ayan Sharma recites his poems.
17 epizódok
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Kaikki jaksot
×तू लिखे या ना लिखे तू लिखे या ना लिखे, मसरूफ़ होना चाहिए। अनकहे से वाक्य को, मशहूर होना चाहिए। बेज़ुबानी बात के हर, मेज़बानी अक्षरों को काले गहरे पन्नों पर, महफूज़ होना चाहिए।। ***
क्यों हूँ ओढ़कर छांव रहबर का भी, आहिस्ता क्यों हूँ? अबस मैं अजनबी इस दौड़ का, हिस्सा क्यों हूँ? तबस्सुम सी नज़र से, नज़्में अक्सर मुझसे पूछे है, हरएक अन्जाम में मैं, हार का किस्सा क्यों हूँ? ***
काफी है महफ़िल तेरी, शिरक़त मेरी, बेशक़ बड़ी ज़हमत। तेरे ही नाम में चर्चा मेरा, गुमनाम काफी है।। मेरी हैं गर्द सी गुस्ताखियां, और ग़ैरती से ग़म। मगर हों दिल में तेरी धड़कनें, एहसास काफी है।। ***
ज़हे-नसीब ख़ुदा शौक़ीन है "ज़ेहन" की ज़हे-नसीब नज़्मों का। मौसम शांत हो अक्सर कर वो बूंदे गिराया है।। अपनी खामोशियों को यूं जो पन्नो पर उतारा है। बनेंगे अश्क़ के कारण या कुर्बत भी गवारा है। बख़ूबी जानता हर इक अदद कमज़ोरियाँ मेरी। आँखे बंद थी, सोया था, सपनों से जगाया है।। बहुत शौक़ीन है अल्लाह बख़ूबी ख़ुद लिखाया है।। ***…
बाकी है बेपरवाहियाँ मेरी, उसी परवरिश का हिस्सा हैं, जहाँ मुलाकात में बिछड़ने का, रिवाज़ बाकी है। ये बूंदे हैं बस जो, कहकाशीं रातों में गिर आयीं, अभी मिलना मेरा, घुलना तेरा, बरसात बाकी है।।
मुबारक़ समूचे भूधरा को, घरघटा नें घेर रखा है, महज़ सपना तेरा सपना, तुझे सपना मुबारक़। तेरी आंखें जो चाहे, जलते नभ का अंश भी देखे, महज़ चंदा दिखा शीतल, तुझे चंदा मुबारक़।। ***
हकीक़त गर्दिश में कुछ, गुमनाम सी, गुस्ताख़ हकीक़त, अनकहे, अल्फ़ाज़ के, अस्बाब हकीक़त। ज़मी पे तू, है आसमां तेरे आईने में, ज़फ़र मिलती नहीं फ़रियाद से, बे-दाद हकीक़त।। ***
"ज़ेहन" बस…। नज़र से दूर इतना ख़ुद को मख़मल में लपेटे हो। "ज़ेहन" बस याद आयी है तेरी रोया नहीं हूँ मैं।। मैं रखता हूँ कदम कुछ बेतुकी सी बेरुख़ी के बीच। है रस्ते की समझ कच्ची थोड़ी खोया नहीं हूँ मैं।। मुझे अब नींद आती है तेरी शैतानियों के संग। है मेरी धड़कनें कुछ तेज़ अभी सोया नहीं हूँ मैं।।
Dear listeners. We are grateful for your overwhelming love. S we have decided to come up with season two. So please stay tuned.
क्या लिखूँ मैं लिखूँ कुछ अनकहा या वो लिखूँ, जो कहा नही? तू वो रंग है, जो रंगा नही कुछ श्वेत है, पर हवा नही। तू कुछ अजनबी, कुछ महज़बीं इक अनछुआ एहसास है। या ये कहूँ, तू कुछ नहीं कुछ तुझमे है, जो ख़ास है।
तुम ही हो उनकी रात जो मख़मल सी सिलवट पर गुज़रती है। मेरी तो छत भी तुम, बहती हवा, तुम ही सितारा हो। "ज़ेहन" तुम ही हो उगता चाँद, हर इक नज़ारा हो।। लो माना डूब जाते है वो अक्सर एक दूजे में। तुम्हारी आंख उर्दू, मेरी नज़्मों का सहारा हो। "ज़ेहन" तुम ही हो ढलती शाम, सागर का किनारा हो। दो तरफा प्यार है जिनको, महज़ इक बार जीतेगा। एक मेरा प्यार है जो रोज़ जीता, फिर भी हारा है; "ज़ेहन" इस प्यार में रो रोकर हंसना भी गवारा है।।…
आंखों से पढ़ ली जाए, ऐसी बात होती। जुगनू भी न सुन पाए, वो आवाज़ होती। ना होता दूसरा, तेरे मेरे खामोशियों के बीच ना झूठा मुस्कुरा पाते, "ज़ेहन" गर पास होती। किसी तकिये पे ना ही, आँसुवों कि छाप होती। अभी बस चाँद है, तब रोशनी भी साथ होती। बाहें बन जाती पर्दा, मैं तुम्हे मेहफ़ूज़ कर लेता और लिखता रात तेरे नाम, "ज़ेहन" गर पास होती। धड़कन चले पर शांत, ऐसी रात होती। तेरी बातों में सच्चाई, मेरे में राज़ होती। उलझ कर एकदूजे में, कोई कहानियां पढ़ते; ना होता दिन न कोई रात, ज़ेहन गर पास होती।…
कमी सी है मेरी बातों में कुछ, अल्फ़ाज़ की कमी सी है, तेरी आंखों में कुछ, एहसास की कमी सी है। ऐ मेरी रूह, मेरे अख़्स को आज़ाद रहने दे, तेरे दिल में भी कुछ, जज़्बात की कमी सी है।। मेरी लोरी में तेरे रात की, कमी सी है, जलती शाख़ में, कुछ राख़ की, कमी सी है। सुनाता हूँ कई सपने, सुबह में आईने को अब; उन्ही हर आज जिनमे, साथ की कमी सी है ।।…
सच्चा क्या है मेरी सोच तेरी सच्चाई में अच्छा क्या है? "ज़ेहन" मेरे प्यार तेरी दोस्ती में सच्चा क्या है? जो होना है यहाँ उसने तो पहले से ही लिख़ डाला, फिर मेरी इबादत तेरी प्रार्थना में अब रखा क्या है? "ज़ेहन" मेरे प्यार तेरी दोस्ती में सच्चा क्या है? मिले हार हमे या जीत मगर बस ये समझ आये हमारी जात तेरी विश्वास में कच्चा क्या है? "ज़ेहन" मेरे प्यार तेरी दोस्ती में सच्चा क्या है? हाँ जब भी अंत हो दोनों कलेवर साथ रख देना, देखें तो हमारी कब्र तेरी राख़ में पक्का क्या "ज़ेहन" मेरे प्यार तेरी दोस्ती में सच्चा क्या है? है?…
कैसे नींद आएगी वो कहते कर्म करते जा ज़िन्दगी चल कर आएगी। "ज़ेहन" अब तू बता दे आज़ कैसे नींद आएगी? कभी मेरे हाथ थामे कोई सीने से लगा लेता। कहे, मुहब्बत नही फिर क्यों है उसका चाँद सा सजदा। मगर मालूम है मुझको तू इक दिन दूर जाएगी। "ज़ेहन" अब तू बता दे आज़ कैसे नींद आएगी? जो पन्नो पे लिखा है नाम तेरा, मुझसे था संभव। थोड़ी काबिलियत होती तो उसमे रंग भर देता। ख़ुदा कल रात बोला सब्र तेरे काम आएगी। "ज़ेहन" अब तू बता दे आज़ कैसे नींद आएगी? "ज़ेहन" तू ही बता, ये क्यू है मेरी रोज़ की उल्फ़त। लो मानो सो गया जो आज़ कल फिर लौट आएगी। ये मेरी चादरें, सपनें ये पन्ने फिर जलाएगी "ज़ेहन" इस रोज़ कोई केहदे, कल को कैसे नींद आएगी?ाएंगी।…
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