सरकार ने हमें कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए अकेला छोड़ दिया है
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ये सच है, हमें नहीं मालूम कि COVID- 19 कोरोना वाइरस की क्रोनोलोजि क्या है, ऐनाटोमी क्या है, उसका केरेक्टर क्या है, उसका नेचर क्या है, लेकिन इसके बावज़ूद, बीमारी तो है। अगर साधारण लफ़्ज़ों में कहें तो ये बीमारी, पहले जिस तरह से निमोनिया होता था, उसका बिगड़ा हुआ रूप है। इसीलिए सावधानी ज़रूरी है। मास्क लगाना है तो, मास्क ज़रूर लगाएयें क्योंकि आज ३० देशों से ज़्यादा देशों कि वेज्ञानिकों ने ये बयान दिया है कि ‘ये वाइरस हवा कि ज़रिये इन्फ़ेक्शन फेलाता है।’ फेलाता है या नहीं, ये वेज्ञानिक्यों की बेहस की बात है। लेकिन दोनो स्तिथियों में मास्क का सभी लोग कह रहे हैं। ये मैं इस्स हिसाब से कह रहा हूँ कि, कोई नुक़सान नहीं है। मास्क लगाना या मास्क ना लगाना कोई बहुत बहादुरी की निशानी नहीं है।मेरी मुख्य बात यहाँ से शुरू होती हैं क्यों के मैं आपको कोरोना की ऐनाटोमी और फ़िसियोलोज़ी समझने नहीं आया हूँ बल्के मैं आपसे एक निवेदन करने जा रहा हूँ। मेरा निवेदन ये है कि, बहुत ही दुःख, विनम्रता और तकलीफ़ कि साथ ये बात मैं कह रहा हूँ कि हमारी प्रिये सरकार जिससे हमने चुना था २०१९ में, उसस सरकार ने हमें कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए अकेला छोड़ दिया है। शायद सरकार ये समझ ही नहीं पाई कि इस्स बीमारी से लड़ना केसे है। जब आप बीमारी को एक इवेंट बना देते हैं, तो फिर वो एक दिन- दो दिन का तो इवेंट हो सकता है, लेकिन वो जिंदगियाँ नहीं बचा सकता। ज़िंदगी बचाने कि लिए लोगों को लगातार समझना पड़ता है, उनकी मदद करनी पड़ती है, सहायता करनी पड़ती है और उनकी समझदारी में विकास करना पड़ता है। हमारे देश के लोग ग़रीब हैं, प्यार करने वाले हैं, भोले हैं, उन्न लोगों कि साथ जीसस भाषा में बात करनी चाहिए वो भाषा सरकार ने अपनाई ही नहीं। मैं उसकी भी आलोचना नहीं करता क्योंकि जब जिस सरकार में जितनी ताक़त होगी वो उतना ही काम करेगी या जितनी समझदारी होगी उतनी ही वो रणनीति। प्रश्न ये है के अब हम क्या करें? मुझे इस्स बात पर गेहरा अफ़सोस होता है कि देश का सबसे बड़ा स्वयमसेवी संगठन राष्ट्रिये स्वयंसेवक संघ इस्स मोके पर चुप बेठ है। अगर अभी पूछें या कोई सवाल खड़ा करे तो संघ की तरफ़ से एक लम्बा बयान आएगा कि हमने खाना खिलाया, हमने कम्बल बाटें, यहाँ हमने मास्क बाटें, लेकिन वो दिखाई कहीं नहीं दिए। मैं उनसे ये अनिरोध कर रहा हूँ के राष्ट्रिये विपत्ति है और सरकार इसमें लगभग फैल हो चुकी है। अब लोगों का कर्तव्य है ख़ासकर स्वयमसेवी संघटनो का कर्तव्य है कि वो लोगों को शिक्षित करें और बताएँ की कोरोना नाम के इस्स वाइरस से केसे लड़ा जा सकता है, केसे बचा जा सकता है।मैं संघ प्रमुख श्री मोहन भागवत से ये अनिरोध करता हूँ के वो सरकार के पूण्डता असफ़ल होजाने की प्रतीक्षा किए बिना अगर सम्भव हो, तो वो तत्काल अपने पूरे समघटन को सिर्फ़ एक काम में लगा दें, भारत की जनता को समझाएँ कि उन्हें क्या-क्या करना चाहिए। इसमें एक भी पेसा खर्च नहीं होगा सिर्फ़ लोगों को ख़ासकर संघ कि लोगों को दरवाजें- दरवाजें जाना पड़ेगा। आज आप राजनीति चोर दीजिए के आप भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में लोगों का दिमाग़ मोड़ें या विरोध में मोड़ेंगे प्रश्न ये नहीं, प्रश्न ये है कि, जान बचाने का। इसलिए मैं श्री मोहन भागवत से कहता हूँ कि तत्काल वो सारे स्वयमसेवकों से जो संघ से जुड़े हुए हैं ये अनिरोध करें की वो एक एक घर में जाएँ और लोगों को बताएँ की उन्हें इस्स बीमारी से बचने कि लिए क्या-क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए। वो चाहे हाथ धोना हो, चाहे मास्क लगाना हो, चाहे झुंड में ना निकलना हो, सवेरे सब्ज़ी लेने लोग लोग जूँड में, एक भीड़ में कूद पड़ते हैं और २ रुपए सब्ज़ी उन्हें सस्ती मिल जाए इसके लिए वो कोरोना का रिस्क उठाते है।अगर ये सारी चीज़ें समझाने कि लिए संघ लग जाए, तो मेरा विश्वास है कि जितने बाक़ी स्वयमसेवी संघठन हैं, जो अपने को NGO कहते हैं वो भी इसमें लग जाएँगे और लोगों को समझाएँगे कि कोरोना से केसे लड़ा जाए। सरकार इस्स समाय पूरी तरह लगी है कि वो अस्पताल बनाए और उसमें COVID-१९ के जो बीमार हैं उनका इलाज करे।फिर फ़ोटो आने लगीं हैं कि अब एक हज़ार बेड का नहीं, दस हज़ार बेड का अस्पताल बना है। लेकिन उन्न अस्पतालों में है क्या? अभी जो अस्पताल हैं, उन्न अस्पतालों में डॉक्टर नहीं हैं, नर्सें ही नहीं हैं ना मेल ना फ़ेमैल, और जो हैं वो बार बार हड़ताल कर रहे हैं। हड़ताल २ करणो से कर रहे हैं। एक उनका कहना है कि उन्हें किट नहीं मिल रही है जिसी वो अपना बचाव कर सकें। उनके पास मास्क नहीं हैं, ग्लव्ज़ नहीं हैं PPE किट नहीं हैं, सेनिटेजर नहीं है और ये इतना बड़ा सवाल है की अस्पताल खोलने के लिए जिन्हें हम लड़ने कि लिए भेजते हैं उन्हें हम हथियार नहीं देते और डाक्टरों के हथियार बहुत छोटे हैं, दवाइयाँ दूसरे स्थर पे आती हैं। इन सारी चीज़ों के साथ जिस एक चीज़ की कमी देश के अस्पतालों में नज़र आइ वो है - वेंटिलेटर, और वेंटिलेटर हैं ही नहीं। जो वेंटिलेटर ख़रीदे गए उन्मे गुजरात का एक उधाहरण है जिसमें वेंटिलेटर की जो मशीनें ख़रीदी गाईं, ऐसा लगता है ग़ुब्बारों में गैस भरने वाली मशीनें हैं। लेकिन वेंटिलेटर के नाम पे इतना पेसा खर्च होगाय और इस्स अपराध में किसी को सज़ा तक नहीं मिली। टेस्टिंग किट हमारे देश में चीन से आई , हमारे बडेय मंत्रियों के बेटे उसमें शामिल रहे, इतनी बड़ी संखिया में किट आई लेकिन किट बेकार निकल गयी, नक़ली निकल गईं, उनका कोई रिज़ल्ट ही नहीं आरहा, उसमें किसी को सज़ा नहीं मिली। एक ख़बर आई और तज़दीक़ के लिए फ़ोटो आइ के इतनी बड़ी संखिया में वेंटिलेटर भेजे गाये और वेंटिलेटर गुडगाओं में एक गोडाउन में बांध हैं कि वो बेकार हैं, नक़ली हैं। ये सारी चीजें सामने आरहीं हैं और किसी को किसी अपराध के लिए कोई सज़ा नहीं मिल रही है इसका मतलब है, इस्स सरकार ने एक तरफ़ भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही है और माफ़ कीजिएगा ये कहने के लिए, दूसरी तरफ़ वो जनता को भाज्ञ के ऊपर छोड़ रही है। इसीलिए आज मैं स्वयमसेवी संस्थाओं से ये निवेदन करना चाहता हूँ, संघ प्रमुख से निवेदन करना चाहता हूँ, आप आगे बढ़ें और बुनियादी समझदारी की बातें आप देश की जनता को बताएँ। बुनियादी समझदारी की बातें और लोग झुंड में ना निकलें, या धार्मिक समारोहों में ना जाएँ, इससे कितनी जानें बच सकती हैं इसका अंदाज़ा आप लगा सकते हैं। ये अलग बात है कि जब हमारे यहाँ सिर्फ़ ४०० मरीज़ थे, तब पूरा देश कर्फ़्यू की तरह हमारे प्रधानमंत्री की अपील पर बंद हो गया था, और ये कहानियाँ फेलाई गाईं की अगर ये लाक्डाउन नहीं होता तो देश में कितने मरीज़ होते। उसके बाद लाक्डाउन खुला, लाक्डाउन १, लाक्डाउन २ और पता नहीं कितने लाक्डाउन किए, और नम्बर्ज़ हैं। उनके खुलने के साथ ही साथ जीस तेज़ी से हमारे देश में संक्रमण बड़े, लगा वो सरकार की चिंता का विषये नहीं है।आज सबसे बड़ा दुर्भाग्य, हम चार दिन से कह रहे थे के हम दुनिया में तीसरे नम्बर की लड़ाई में पहुँच गए हैं, सरकार ने ध्यान नहीं दिया, अब आधिकारिक रूप से कहा गया के हम दुनिया में नम्बर तीन हैं कोरोना वाइरस से समकरमण के दौड़ में। तीसरा स्थान हमारा सुरक्षित होगाय अब दो और बचे हैं, और तीसरा स्थान हमने रूस को पछाड़ के लिया है। रूस हमसे पीछे चला गया है हम रूस से आगे आगाए हैं। सवाल सिर्फ़ इतना उठता है, की क्या हम सचमुच नम्बर वन की दौड़ में हैं? आज दुनिया में नम्बर वन पर अमेरिका है। क्या हम कोरोना समकरमण के मामले में अमेरिका को भी पछाड़ना चाहते हैं? और अगर नहीं पछाड़ना चाहते हैं तो सब जो मानवता के समर्थक हैं उन्हें आगे आना होगा क्यों कि सरकार को समझाने से काम नहीं चलेगा, सरकार के पास जितना दिमाग़ है सरकार उससी दिमाग़ से काम कर रही है और ये हम देख चुके हैं। पिछले कुछ सालों में सरकार ने अपने दिमाग़ की बदौलत जो-जो काम किए जिसमें नोट बंदी से शुरू कीजिए और आज कोरोना समकरमण से लड़ने तक आज जितने काम सरकार ने किए और जितने दावे किए उसको लेकर सिर्फ़ हंसा जा सकता है और रोया जा सकता है कि इतनी मामूली समझ जो हिंदुस्तान के साधारण लिखने पाड़ने वाले में होती है उसका भी सबूत हमारी सरकार नहीं दे रही। पर यहाँ सरकार की आलोचना करने का प्रश्न नहीं है। सरकार से अपेक्षाएँ तोड़ने का, सरकार से अपेक्षाएँ बंद करने का समाए है। ये जीवन का सवाल है, और जीवन के सवाल में सरकार आपका साथ ना दे तो उसका मतलब ये नहीं कि हम मरने के लिए विवश होजाएँ। हमें चाहिए के हम अपने स्तर पर कोरोना से लड़ने की रणनीति बनाएँ और वो सारे साधन अपने घरवालों को, अपने पड़ोसियों को, अपने मोहल्लेय के लोगों को, अपने दोस्तों को समझाएँ जिससे हम कोरोना समकरमण से बच सकते हैं। और कोरोना समकरमण अगर किसी को हो ही जाए तो हमें अपने पड़ोस के केमिस्ट के ऊपर ज़्यादा भरोसा करना चाइए ना के किसी अस्पताल के। अगर अस्पताल आप पहुँच गए तो आप लुट्ट जाएँगे। एक दिन का, एक से देड़ लाख रुपए चार्ज है। और जाह नहीं हो रहा है वहाँ लोग मर रहे हैं, और जाह मर रहे हैं, उसका कारण काग़ज़ में भी हाथ में नहीं आपाता। दिल्ली में तो ग्रह्मणती को कहना पड़ा की लाशों के साथ बदसलूक नहीं हो रहा है, इसलिए अब लाशों को उनके घरवालों को देने की बात करनी चाइए।लाशों को अगर घरवालों को दे भी दें तो एक इतना विभाग्या केस हमारे सामने आया है के, माँ की मौत होगई कोरोना से, बेटे ने शव को ना कंधा दिया ना आग लगाई। उससे लगा उससे भी कोरोना होजाएगा। काश उसकी माँ ने सोचा होता बचपन में, के ये बेटा आगे जाकर के ऐसा सलूक करेगा। इसीलिए मेरी अपील है, प्रराथना है, कि हम लोग खुद समझें और अंत में स्वयमसेवी संस्था से और खससकर प्रमुख मोहन भागवत तये करें कि अपने सारे स्वयमसेवकों को, लोगों को समझाने के लिए निकालना है और सिर्फ़ इसीलिए कि सरकार इस्स सवाल के ऊपर अस्वर्ग होगई है।
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